कोरोना ने मोदी सरकार की गिरती साख और आर्थिक नाकामी को छिपाने का काम किया https://ift.tt/36G06oD - Sarkari NEWS

Breaking

This is one of the best website to get news related to new rules and regulations setup by the government or any new scheme introduced by the government. This website will provide the news on various governmental topics so as to make sure that the words and deeds of government reaches its people. And the people must've aware of what the government is planning, what all actions are being taken. All these things will be covered in this website.

Thursday, May 28, 2020

कोरोना ने मोदी सरकार की गिरती साख और आर्थिक नाकामी को छिपाने का काम किया https://ift.tt/36G06oD

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल का पहला साल बड़ी खामोश धूमधाम से पूरा हो रहा है। कोरोना को संभालने में सरकार ने जो अयोग्यता, बेरहमी और निरंकुशता दिखाई है और सरकारी उपेक्षा तथा अव्यवस्था के बीच घर लौटते लाखों प्रवासी मजदूरों ने जो दर्द झेला है, इससे वह अपने पहले साल की जीत का जश्न नहीं मना सकती।

साल 2019 के चुनाव में बीजेपी ने मोदी को 56-इंच के सीने वाले शक्तिशाली राष्ट्रवादी के रूप में प्रस्तुत किया। एक अकेला इंसान जो देश को आतंकवादियों, घुसपैठियों, ‘राष्ट्रद्रोहियों’ और उन ‘दीमकों’ से बचा सकता है, जो बहुसंख्यक हिंदू राष्ट्र के उस ढांचे को खोखला कर रहे हैं, जिसे मोदी बना रहे थे। यह तरीका कारगर रहा।

मोदी सरकार दोबारा भारी बहुमत से चुनी गई, जिसका विशेषज्ञ अनुमान भी नहीं लगा पाए।सरकार ने भारत की छवि बदलने के इरादे से काम शुरू किया। पहले 100 दिनों में कई कानून पास कराए, जिनमें ‘ट्रिपल तलाक’ को अपराध बनाना और अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा खत्म करना शामिल था। इससे सरकार ने दृढ़ और निर्णायक कार्रवाई के उदाहरण पेश करने की कोशिश की।

अगले 100 दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद की विवादित जमीन पर फैसला सुनाया और नागरिकता (संशोधन) कानून पास हुआ, जिससे देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए और राजधानी में हुए दंगों में 56 लोगों की मौत हो गई।कोरोना महामारी से सरकार को कुछ राहत की सांस लेने का मौका मिला है।

उसे सीएए/एनआरसी की वजह से साख में आई गिरावट को रोकने और देश को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और व्यापक राजनीतिक असंतोष की ओर ले जा रहे रास्ते में बदलाव का अवसर मिला। इससे सरकार को आर्थिक मोर्चे पर नाकामी छिपाने का बहाना भी मिल गया।

मोदी के आजमाए गए ज्यादातर अलग सोच वाले समाधानों ने देश को नुकसान पहुंचाया है, लेकिन मोदी को उनकी कोशिशों के लिए पूरा श्रेय देने वाले ज्यादातर मतदाता इससे बेपरवाह नजर आते हैं।2016 में देश की 86% करेंसी की नोटबंदी से आर्थिक विकास को भारी नुकसान पहुंचा, लेकिन मतदाताओं को लगता है कि उनकी नीयत अच्छी थी।

इसके बाद लापरवाही से जीएसटी लागू कर दिया। मोदी ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीनने का फैसला लिया। इस फैसले से दुनिया में भारत की छवि और खराब हो गई। आज देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री दिखता है जिसने भारतीय राजनीति की हर शिष्ट परंपरा को उलट-पुलट दिया है।

कानून-व्यवस्था एजेंसियों को मामूली आरोपों की जांच में विपक्ष के नेताओं के पीछे लगा देते हैं, ऐसे मंत्रियों को बढ़ावा देते हैं जिनके बयान अल्पसंख्यक समुदाय को भयभीत करते हैं, मीडिया को इतना डराया जाता है कि उनकी कवरेज भारत की लोकतांत्रिक संस्कृति के लिए शर्मनाक लगती है।

एकता का आदर्श अब एकरूपता हो गया है, अंधभक्ति को अब देशभक्ति माना जाता है, स्वतंत्र संस्थान सरकार के सामने झुके नजर आते हैं, लोकतंत्र अब एक व्यक्ति का शासन बनता जा रहा है। भारतीय प्रजातांत्रिक पद्धति पर विश्वास करने वाले हम सोच में पड़ गए हैं कि शायद इसकी जड़ें उतनी मजबूत नहीं हैं जितनी कल्पना की थी।

इसकी जगह हमें जोशीला राष्ट्रवाद मिला है, जो भारत की हर वास्तविक या काल्पनिक कामयाबी के गीत गाता है और विरोध करने पर ‘राष्ट्रद्रोही’ का लेबल लग जाता है। राजनीतिक स्वतंत्रता अब कोई नैतिक गुण नहीं रह गया है। स्कॉलर और टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता लिखते हैं कि ‘मुझे याद नहीं कि ऐसा कभी हुआ हो जब जनता और पेशेवर विमर्श को सरकार की धुन पर चलने पर इतना फायदा मिला हो।’

भारत ने तीन हजार सालों से सभी देशों, धर्मों के सताए गए लोगों को आश्रय दिया है। आज सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों को ठुकरा देती है, ‘विदेशियों’ (जिन्हें 1971 के बाद यहां रहने, यहां तक कि पैदा होने वाले के रूप में परिभाषित किया जाता है) को बाहर निकालने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार करती है।

हमारी आंखों के सामने ही सरकार देश का चरित्र बदलने की कोशिश कर रही है। मेरे जैसे उदार प्रजातंत्रवादियों की बड़ी चिंताएं यह हैं कि भारत की कम शिक्षित और सत्तारूढ़ पार्टी के प्रोपेगेंडा के बहकावे में आ गई जनता भी शायद यही चाहती है। साथ ही हमारे देश में लंबे समय से चला आ रहा सौम्य और समावेशी राष्ट्र होने का विचार खत्म हो रहा है।

उसकी जगह जो भारत उभर रहा है, वह पहले से कम बहुलवादी, कम मतभेद स्वीकार करने वाला, कम समावेशी और कम सहिष्णु रह गया है। यह मोदी 2.0 के पहले साल की विरासत है। अगर भारत को अपनी आत्मा को दोबारा पाना है, तो अगले साल सरकार को अपनी दिशा बदलनी होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
शशि थरूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2ZMTJhR

No comments:

Post a Comment