अमित शाह कोरोना से घिरी दिल्ली के बिग बॉस बने, उनकी वापसी एक तरह से राजनीति का ‘अनलॉक’ होना है https://ift.tt/2VXiZiL - Sarkari NEWS

Breaking

This is one of the best website to get news related to new rules and regulations setup by the government or any new scheme introduced by the government. This website will provide the news on various governmental topics so as to make sure that the words and deeds of government reaches its people. And the people must've aware of what the government is planning, what all actions are being taken. All these things will be covered in this website.

Thursday, July 2, 2020

अमित शाह कोरोना से घिरी दिल्ली के बिग बॉस बने, उनकी वापसी एक तरह से राजनीति का ‘अनलॉक’ होना है https://ift.tt/2VXiZiL

सोशल मीडिया की निर्दयी दुनिया देश के दूसरे सबसे शक्तिशाली व्यक्ति को भी नहीं छोड़ती। जब कोविड-19 लॉकडाउन के शुरुआती दो महीनों में उनकी गैर-मौजूदगी की चर्चा हो रही थी और उनके स्वास्थ्य पर इतने चिंताजनक सवाल उठाए जा रहे थे, तब आखिरकार गृहमंत्री को स्पष्टीकरण देना पड़ा कि वे ठीक हैं। पिछले महीने जब देश धीरे-धीरे ‘अनलॉक’ हुआ तो सारी शंकाएं खत्म हो गईं। अमित शाह स्वस्थ हैं और उनकी पूरी तरह से वापसी हो गई है।

उन्होंने मोदी 2.0 की पहली वर्षगांठ पर कई सुनियोजित साक्षात्कार दिए। उन्होंने बिहार, ओडिशा और बंगाल में ‘वर्चुअल’ रैलियों को संबोधित किया। राज्यसभा चुनावों पर नजर रखी और बीजेपी शासित मणिपुर में सरकार का संकट खत्म किया। सबसे जरूरी वे कोविड से पीड़ित राष्ट्रीय राजधानी के ‘बिग बॉस’ बन गए। एक तरह से शाह की वापसी राजनीति का ‘अनलॉक’ होना है। जब डरपोक विपक्ष ने नाराजगी दिखाने के लिए खुद को ट्विटर तक सीमित कर लिया, ऐसे में जन हित के जरूरी मुद्दों को उठाने की जगह नहीं रह गई। जरूरी मसलों पर शायद ही संसद की स्थायी समिति की कोई बैठक हुई हो। हां, प्रधानमंत्री ने जरूर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुख्यमंत्रियों के साथ दर्जनभर बैठकें और चीन पर सर्वदल बैठक की। लेकिन कैमरे की ये बैठकें सार्वजनिक बहस के माहौल को टक्कर नहीं दे सकतीं। जहां कोरोना प्रभावित लोकतंत्रों, खासतौर पर ब्रिटेन ने खुली संसदीय बहस को बढ़ावा दिया, भारत ने राजनीति पर भी मोराटोरियम लागू कर दिया।

लोकतांत्रिक मतभेद और चर्चा के किसी भी रूप की स्वेच्छाचारिता से उपेक्षा करना खतरनाक है। इससे एक प्रबल पार्टी की सरकार को पारदर्शिता और जवाबदेही न होने की आड़ में लोगों पर अपनी इच्छा थोपने का मौका मिल गया है। भारत-चीन सीमा पर गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती को शब्दों के खेल में उलझाया जा रहा है। लाखों प्रवासियों के विस्पाथन की त्रासदी का दोष राज्य सरकारों को दिया जा रहा है। महामारियों से लड़ने में स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूत न कर पाने की असफलता भी राज्यों के माथे मढ़ी जा रही है। पीएम केयर्स फंड के बारे में जानकारी मांगने वाली आरटीआई का कोई जवाब नहीं दिया गया। पेट्रोल-डीजल के दाम एक महीने में 22 बार बढ़े। जामिया की 27 वर्षीय छात्र कार्यकर्ता को दिल्ली दंगों का मुख्य षड्यंत्रकारी माना गया लेकिन सत्ताधारी पार्टी से जुड़े स्थानीय नेता को क्लीन चिट दे दी गई। जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की मदद के आरोपी को जमानत मिल गई क्योंकि कोई चार्जशीट दर्ज नहीं थी, लेकिन एक मानवाधिकार कार्यकर्ता को जमानत देने का विरोध किया गया। कश्मीर घाटी में राजनीतिक कैदियों की लगातार नजरबंदी को स्पष्टरूप से उचित नहीं ठहराया जा सकता लेकिन इसपर चिंता जताने पर तुरंत देशद्रोही बता दिया जाता है।

बेलगाम सत्ता की शक्ति के इस अमंगल परिदृश्य में वापसी होती है ‘महान ध्रुवीकरणकर्ता’ अमित शाह की। मोदी 2.0 में और कोई भी मंत्री ऐसा नहीं है, जो गृहमंत्री की तरह राजनीति की हांडी को हमेशा गरम रखता हो। अब जब शाह की वापसी हो गई है, तो ऐसा लगता है कि मोदी सरकार फिर अपना ध्यान कोविड-पीड़ित राष्ट्र के राजनीतिक प्रबंधन पर ले आएगी। उदाहरण के लिए बिहार में इस साल के अंत में चुनाव जीतना है और शाह के चुनावी व्यवस्थापन कौशल की जरूरत पड़ेगी। अगले साल बंगाल में जीत का भी इंतजार है, जो शाह के लिए निजी मिशन बन चुका है। तभी कोरोना के बीच, चक्रवात से उबर रहे राज्य में शाह ने अपनी सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी ममता बनर्जी पर तीखे हमले शुरू कर दिए हैं। यह संकेत है कि छोटे अंतराल के बाद अब लड़ाई फिर जारी है।

विडंबना यह है कि गृहमंत्री से उम्मीद की जाती है कि वे राष्ट्रीय आपदा के दौरान राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करें। आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 केंद्रीय गृहमंत्री को हेल्थ इमरजेंसी के लिए कई शक्तियां देता है लेकिन केंद्र को मदद और मार्गदर्शन देने को भी कहता है, ताकि केंद्र-राज्य के बीच मैत्रीपूर्ण समीकरण रहें। शाह की शख्सियत सहज रूप से लड़ाकू रही है, लेकिन महामारी के दौरान सर्वसम्मति और सहयोग बनाने के लिए शैली में बदलाव की जरूरत है। यह पहले से ही ध्रुवित समाज को और बांटने या डरा कर राज करने का समय नहीं है। यह अनिश्चित है कि क्या शाह जैसे नेता खुद को बदलेंगे। चुनाव जीतने वालों के लिए सुशासन के नियम बहुत अलग होते हैं।

दिल्ली में पहले ही ऐसा कहा जा रहा है कि शाह कोविड से लड़ने के लिए आदेश देने में राज्य सरकार से बहुत कम सलाह-मशविरा कर रहे हैं। जिससे यह समझ आता है कि क्यों कई एकतरफा फैसलों को अगले ही दिन रद्द कर दिया जा रहा है। महामारी में अपने व्यक्तिगत अहम को अलग रख जनहित के बारे में सोचने की जरूरत है। गृहमंत्री को शायद दिल्ली के मुख्यमंत्री से कोई प्रेम न हो लेकिन इस समय व्यक्तिगत मतभेद भुलाकर एक टीम के रूप में काम करना होगा। अब तक के राजनीतिक कॅरिअर में शाह की छवि विभाजनकारी रही है। अब उन्हें डरी हुई जनता को राहत देकर एक करने वाली शक्ति बनना चाहिए। अगर वे यह बदलाव कर पाए तो यह हमारे दौर के सबसे विवादास्पद राजनेता के कॅरिअर में एक बहुत महत्वपूर्ण कदम होगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
राजदीप सरदेसाई, वरिष्ठ पत्रकार


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/38poMTe

No comments:

Post a Comment