ऐसा समाज जो मास्क जैसी साधारण चीज का भी राजनीतिकरण कर दे, वह किसी भी चीज का राजनीतिकरण कर सकता है https://ift.tt/39Q8xzc - Sarkari NEWS

Breaking

This is one of the best website to get news related to new rules and regulations setup by the government or any new scheme introduced by the government. This website will provide the news on various governmental topics so as to make sure that the words and deeds of government reaches its people. And the people must've aware of what the government is planning, what all actions are being taken. All these things will be covered in this website.

Monday, August 3, 2020

ऐसा समाज जो मास्क जैसी साधारण चीज का भी राजनीतिकरण कर दे, वह किसी भी चीज का राजनीतिकरण कर सकता है https://ift.tt/39Q8xzc

अमेरिकी इतिहास में 2020 की गर्मियां बेहद जरूरी तारीखों के रूप में दर्ज होंगी। जहां देखिए वहां ऐसे माता-पिता दिखेंगे जो नहीं जानते कि बच्चों को स्कूल कब भेजना है, ऐसे किरायेदार दिखेंगे जो नहीं जानते कि उन्हें कब निकाल देंगे, ऐसे बेरोजगार दिखेंगे जो नहीं जानते कि क्या कांग्रेस उनकी सुरक्षा करेगी, ऐसे बिजनेस दिखेेंगे जो नहीं जानते कि वे कब तक चल पाएंगे और हममें से कोई नहीं जानता कि क्या हम नवंबर में मतदान कर पाएंगे।

यह हमारी अर्थव्यवस्था, समाज, स्कूल और सड़कों के नीचे उबलता चिंता का लावा है, जो बस फटने ही वाला है क्योंकि हम कोरोना के प्रबंधन में बुरी तरह असफल रहे हैं। हम इतने अनाड़ी कैसे साबित हुए? भगवान न करे, अगर अमेरिका लावे के नीचे दब जाए और भविष्य में पुरातत्वविद् जब खुदाई करेंगे तो मुझे लगता है कि इस सवाल के जवाब में उन्हें सबसे पहले कौड़ियों के दाम मिलने वाली साधारण चीज मिलेगी। फेस मास्क।

ऐसी चीज जो हमारा मुंह ढंकने के काम आती है, वह इस बारे में बहुत कुछ बताती है कि हम कितने पागल हो चुके हैं। खासतौर पर मास्क बताते हैं कि कैसे दुनिया के सबसे अमीर और वैज्ञानिक रूप से आधुनिक देश के कुछ नेताओं और नागरिकों ने संक्रमण रोकने के लिए पहनी जाने वाली चीज को अभिव्यक्ति की आजादी के मुद्दे से जोड़ दिया। ऐसा किसी और देश में नहीं हुआ।

ऐसा समाज जो मास्क जैसी साधारण चीज का भी राजनीतिकरण कर दे, वह किसी भी चीज का राजनीतिकरण कर सकता है। ऐसा समाज अच्छे समय में अपनी पूरी क्षमता नहीं पहचान सकता, न ही बुरे समय को रोक सकता है। जब आप नागरिकों के लिए हमारी पुरानी पीढ़ियों द्वारा किए गए बलिदानों की तुलना आज की पीढ़ी के उन लोगों से करते हैं जो कोविड-19 से अमेरिकियों को बचाने के लिए मास्क तक पहनने को तैयार नहीं हैं, तो आप नि:शब्द हो जाते हैं।

इसके लिए कोई बहाना नहीं चल सकता। महामारी के दौर में मास्क पहनने से इनकार करना स्वार्थ है, अपनी स्वतंत्रता का ढोंग है। फिर भी अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति और ज्यादातर रिपब्लिकन गवर्नर व उनके समर्थक मास्क पहनने के विरोध को निजी स्वतंत्रता के उल्लंघन के विरोध जैसा बता रहे हैं। जबकि उन्हें इसे वायरस को फैलने से रोकने का सबसे असरदार और सस्ता तरीका बताना चाहिए था।

ट्रम्प द्वारा मास्क के विरोध का दरअसल उनकी विचारधारा से कोई संबंध नहीं है। यह तो बस उनका हर उस चीज के प्रति विरोध है जो इस स्वास्थ्य संकट को उजागर करे और उनके फिर चुने जाने की संभावना को नुकसान पहुंचाए। लेकिन उपराष्ट्रपति माइक पेंस अपने असभ्य मास्क विरोध को संवैधानिक जामा पहना रहे हैं।

ट्रम्प द्वारा उनके कार्यक्रमों में मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की कमी को अनदेखा करने के बारे में हाल ही में जब पेंस से पूछा गया तो वे बोले, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कहीं शांतिपूर्वक इकट्‌ठा होना अमेरिकी संविधान में है। इस स्वास्थ्य संकट में भी अमेरिकी अपने संवैधानिक अधिकार नहीं छोड़ सकते।’ कैसी धोखाधड़ी है!

वेसलेयन विश्वविद्यालय के मानद प्रोफेसर जॉन फिन कहते हैं, ‘मास्क अनिवार्य करना दो कारणों से ‘पहले संशोधन’ का उल्लंघन नहीं करता। पहला, मास्क अभिव्यक्ति से नहीं रोकता। दूसरा, संविधान में कहा गया है कि समुदाय के स्वास्थ्य, सुरक्षा और कल्याण को सुरक्षित रखने के लिए सभी संवैधानिक अधिकार सरकार के अधीन हैं।’

बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ने उन देशों का अध्ययन किया जहां कोरोना का कर्व फ्लैट हो गया है। इसके मुताबिक इन देशों में अर्थव्यवस्था खोलने में ‘सोशल डिस्टेंसिंग, हाथ धोना और मास्क का व्यापक इस्तेमाल’ का सबसे बड़ा योगदान रहा।

लेकिन हमारे भविष्य के पुरातत्वविदों का मास्क देखना इसलिए भी सही होगा क्योंकि ट्रम्प समर्थक रिपब्लिकन नेताओं द्वारा मास्क विरोध यह याद दिलाता है कि रिपब्लिकन कितनी भटकी हुई है और हम बिना सिद्धांतवादी कंजर्वेटिव पार्टी के बतौर एक देश सर्वश्रेष्ठ नहीं बन सकते। एक ऐसी पार्टी जिसका आधार विज्ञान में हो, न कि बेतुके स्वेच्छातंत्रवाद में।

फोर्ब्स ने हाल ही में बताया कि जिन 19 राज्यों ने अभी मास्क अनिवार्य नहीं किया है, उनमें से 18 को रिपब्लिकन गवर्नर चला रहे हैं। हालांकि लैरी होगन, माइक डेवाइन, एरिक होलकॉम्ब और के इवे जैसे रिपब्लिकन गवर्नरों की सराहना करनी चाहिए जो मास्क का समर्थन कर रहे हैं।

इस महामारी में मास्क पहनना हमारे साथी नागरिकों के प्रति सम्मान का संकेत है। फिर वे किसी भी नस्ल, संप्रदाय या राजनीतिक विचारधारा के हों। मास्क पहनने का मतलब है, ‘मैं सिर्फ खुद को लेकर चिंतित नहीं हूं। मुझे आपकी भी चिंता है। हम सभी एक ही समुदाय, एक ही देश से हैं और हमारा संघर्ष भी एक ही है कि हमें स्वस्थ रहना है।’

कोई और राष्ट्रपति होता तो वह महामारी की शुरुआत से ही हर अमेरिकी से लाल, सफेद और नीला मास्क पहनने की गुजारिश करता। वह ऐसा मास्क दो कामों में इस्तेमाल करता। कोविड-19 को खत्म करने में और लंबे सफर के लिए हम सबको साथ लाने में। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, कोई और राष्ट्रपति। (ये लेखक के अपने विचार हैं)



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3gpTIG5

No comments:

Post a Comment