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Thursday, December 3, 2020

क्या है mRNA टेक्नोलॉजी, जिस वजह से बन सकी कोरोना की वैक्सीन; जानें इस तकनीक को बनाने वाले वैज्ञानिकों के बारे में https://ift.tt/3qqyxZN

कोरोना की वैक्सीन का इंतजार अब बस खत्म ही होने वाला है। यूके में फाइजर और बायोएनटेक की वैक्सीन को मंजूरी मिल चुकी है। एक और अमेरिकी कंपनी मॉडर्ना ने भी वैक्सीन के इमरजेंसी यूज के लिए एप्रूवल मांगा है। ये दोनों ही वैक्सीन मैसेंजर-RNA यानी mRNA पर बेस्ड टेक्नोलॉजी पर डेवलप की गई हैं और दोनों ही 95% तक इफेक्टिव भी हैं। इस तरह की वैक्सीन mRNA का इस्तेमाल करती हैं, जो शरीर को बताती हैं कि वायरस से लड़ने के लिए किस तरह का प्रोटीन बनाना है? लेकिन ये टेक्नोलॉजी क्या है? और इसे किसने बनाया है?

पहले बात क्या होती है mRNA टेक्नोलॉजी?

  • mRNA या मैसेंजर-RNA जेनेटिक कोड का एक छोटा सा हिस्सा है, जो हमारी सेल्स (कोशिकाओं) में प्रोटीन बनाती है। इसे आसान भाषा में ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब हमारे शरीर पर कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है, तो mRNA टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को उस वायरस या बैक्टीरिया से लड़ने के लिए प्रोटीन बनाने का मैसेज भेजती है। इससे हमारे इम्यून सिस्टम को जो जरूरी प्रोटीन चाहिए, वो मिल जाता है और हमारे शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है।
  • इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे कन्वेंशनल वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा जल्दी वैक्सीन बन सकती है। इसके साथ ही इससे शरीर की इम्युनिटी भी मजबूत होती है। ये पहली बार है जब mRNA टेक्नोलॉजी पर बेस्ड वैक्सीन दुनिया में बन रही है।

अब आते हैं mRNA टेक्नोलॉजी डेवलप करने वाले वैज्ञानिकों पर...
1. कैटलिन कारिकोः जिन्होंने mRNA टेक्नोलॉजी बनाई

  • कैटलिन कारिको का जन्म 17 अक्टूबर 1955 को हंगरी में हुआ। कारिको ने कई सालों तक हंगरी की सेज्ड यूनिवर्सिटी में RNA पर काम किया। 1985 में उन्होंने अपनी कार ब्लैक मार्केट में 1200 डॉलर में बेच दी और अमेरिका आ गई। यहां आकर उन्होंने पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में mRNA टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया।
  • mRNA की खोज तो 1961 में हो गई थी, लेकिन अब भी वैज्ञानिक इसके जरिए ये पता लगाने की कोशिश कर रहे थे कि इससे शरीर में प्रोटीन कैसे बन सकता है? कारिको इसी पर काम करना चाहती थीं। लेकिन उनके पास फंडिंग की कमी थी। 1990 में पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी में कारिको के बॉस ने उनसे कहा कि आप या तो जॉब छोड़ दें या फिर डिमोट हो जाएं। कारिको का डिमोशन कर दिया गया। कारिको पुरानी बीमारियों की वैक्सीन और ड्रग्स बनाना चाहती थीं।
कैटलिन कारिको ने 1980 में RNA टेक्नोलॉजी पर PHD भी की।
  • उसी समय दुनियाभर में भी इस बात की रिसर्च चल रही थी कि क्या mRNA का इस्तेमाल वायरल से लड़ने के लिए खास एंटीबॉडी बनाने के लिए किया जा सकता है? 1997 में पेन्सेल्वेनिया यूनिवर्सिटी में ड्रू विसमैन आए। ड्रू मशहूर इम्युनोलॉजिस्ट थे। ड्रू ने कारिको को फंडिंग की। बाद में दोनों ने पार्टनरशिप करके इस टेक्नोलॉजी पर काम शुरू किया। 2005 में ड्रू और कारिको ने एक रिसर्च पेपर छापा, जिसमें दावा किया कि मॉडिफाइड mRNA के जरिए इम्युनिटी बढ़ाई जा सकती है, जिससे कई बीमारियों की दवा और वैक्सीन भी बन सकती है।
  • हालांकि, उनकी इस रिसर्च पर कई सालों तक किसी ने ध्यान नहीं दिया। 2010 में अमेरिकी वैज्ञानिक डैरिक रोसी ने मॉडिफाइड mRNA से वैक्सीन बनाने के लिए बायोटेक कंपनी मॉडर्ना खोली। 2013 में कारिको को जर्मन कंपनी बायोएनटेक में सीनियर वाइस प्रेसिडेंट अपॉइंट किया गया। इस टेक्नोलॉजी के लिए डैरिक रोसी ने कैटलिन कारिको और ड्रू विसमैन को नोबेल प्राइज देने की मांग भी की है।
उर साहीन और उनकी पत्नी ओजलोम टुरैसी ने 2008 में बायोएनटेक की स्थापना की।

2. उर साहिन और ओजलोम टुरैसीः बायोएनटेक कंपनी शुरू की

  • तुर्की के रहने वाले उर साहिन और उनकी पत्नी ओजलोम टुरैसी पहले वैज्ञानिक एंटरप्रेन्योर हैं। उर साहिन जब 4 साल के थे, तभी अपने माता-पिता के साथ जर्मनी आ गए। जबकि, टुरैसी का जन्म तुर्की के फिजिशियन के घर हुआ था। टुरैसी पहले नन बनना चाहती थीं।
  • उर साहिन और ओजलोम टुरैसी ने 2008 में जर्मनी में बायोएनटेक कंपनी की शुरुआत की। उर कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर हैं और उनकी पत्नी चीफ मेडिकल ऑफिसर। शुरुआत में उर और उनकी पत्नी कैंसर के इलाज के लिए मोनोकोलेन एंटीबॉडी पर रिसर्च कर रहे थे। बाद में उन्होंने mRNA टेक्नोलॉजी पर रिसर्च शुरू की।


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